सिंहासन बत्तीसी की 24वीं कहानी - करुणावती पुतली की कथा Karunavati Putli Story

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Singhasan Battisi chobisvi putli Karunavati Story

सिंहासन बत्तीसी की 24वीं कहानी में एक करुणावती पुतली की कथा है, जिसका नाम था "करुणा मुदिता". इस कहानी में व्यापक शिक्षा और करुणा की भावना है।


बहुत समय पहले, एक राजा अपने दरबार में न्यायप्रिय और सुधारक राजा थे। राजा का एक पुत्र था, जिसका नाम वीरेन्द्र था। वह राजा की केवल संतान था और बचपन में ही वह अद्वितीय प्रेम से बढ़ा था।


राजा ने वीरेन्द्र को राजकुमार बनाने के लिए सर्वशिक्षित किया था, लेकिन राजा की अच्छूत की आत्मा ने उसे एक बड़ी शिक्षा दी - अनुभव से सीखना और सबकुछ को होकर महसूस करना।


एक दिन, राजा ने वीरेन्द्र को राजमहल के एक कोने में ले जाकर एक छोटी सी पुतली का दर्जा दिया। इस पुतली का नाम रखा गया था "करुणा मुदिता"। इस पुतली की विशेषता यह थी कि यह भूखे, दुःखी, रोगी, और परेशान लोगों की मदद कर सकती थी।


वीरेन्द्र ने विचारा कि वह इस पुतली की सहायता से कैसे लोगों की मदद कर सकता है। इस पर रजा ने बताया कि इस पुतली को जितना बड़ा दुःख होगा, वह उतनी ही अधिक करुणा बनेगी।


वीरेन्द्र ने विश्वास करते हुए कहा, "करुणा मुदिता, तुम्हारा कार्य शुरू हो!" और तब से वह पुतली लोगों की दुखी स्थितियों में गंभीर रूप से सहायक होती गई।


करुणा मुदिता ने भूखे लोगों को खाना पहुंचाया, बीमारों का इलाज किया, और दुखी लोगों को सांत्वना दी। उसने अपनी करुणा से सारे राज्य को सुखी और शान्त बना दिया।


इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि जीवन में करुणा और सेवा का भाव रखना हमें सभी को एक समर्थ, सजीव और खुशहाल समाज बनाने में मदद कर सकता है।


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