कर्ण और दुर्योधन की मित्रता महाभारत के किरदारों में से एक रोमांटिक और प्रेरणादायक कहानी है। इन दोनों के बीच की यह मित्रता महाभारत के अनेक पर्वों में प्रमुख रूप से प्रस्तुत है।
कर्ण, सूर्य पुत्र कुन्ती और सूर्य देव के आसमानी बालक, थे जबकि दुर्योधन, कौरवों के राजा धृतराष्ट्र के अंशज, उनके बड़े पुत्र थे। कर्ण और दुर्योधन की मित्रता उनके बचपन से ही शुरू हुई थी और यह दोनों बहुत गहरी और विशेष बन गई थी।
कर्ण का जन्म कुन्ती ने सूर्य देव की कृपा से प्राप्त किया था, लेकिन उन्हें अपनी माता-पिता के साथ बड़े परिवार में जगह नहीं मिली थी। इसके कारण, वह धृतराष्ट्र के पुत्रों के साथ बड़ा होते हुए भी कौरवों के साथ कभी भी पूरी तरह स्वीकृत नहीं हुए। इस परिस्थिति में, दुर्योधन ने कर्ण का साथ दिया और उन्हें अपना सबसे अच्छा मित्र माना।
दुर्योधन की मित्रता ने कर्ण को कौरवों के बीच एक महत्वपूर्ण स्थान दिया और उन्हें महाभारत युद्ध में उनके साथ रहने का अवसर मिला। कर्ण ने दुर्योधन की भगवद्भक्ति, साहस, और नीति में विशेषज्ञता दिखाई और उनकी सेना का एक प्रमुख रथी बन गए।
हालांकि, मित्रता की इस जोड़ी ने अच्छे और बुरे के बीच उत्तम और अधम के बीच एक रोमांटिक संबंध की भूमि दी, महाभारत में इसका परिणाम खत्म होता है। कर्ण का उत्तराधिकारी होने का सत्य प्रकट होता है, और उनकी मित्रता और सामर्थ्य के बावजूद उन्हें महाभारत युद्ध में अस्तित्व नहीं मिलता है।
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