अंधा भरोसा नहीं करना Akbar birbal ki kahani : Andha Bharosha nahi Karna

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एक दिन, अकबर को एक विचित्र समस्या का सामना करना पड़ा। उसके दरबार में एक व्यक्ति ने कहा, "हुकुम, मैं आपके दरबार का बड़ा भक्त हूँ और मुझे यह सच्चाई यकीनन बताई गई है कि आप हर किसी को बिना सवाल पूछे भरोसा करते हैं।"


इस पर अकबर ने हंसते हुए कहा, "हाँ, यह सच है। मैं अपने दरबार के लोगों पर भरोसा करता हूँ, लेकिन तुम्हें कैसे पता चला?"


व्यक्ति ने उत्तर दिया, "हुकुम, मुझे बीरबल ने बताया है।"


अकबर ने बीरबल की तरफ मुड़कर कहा, "क्या यह सच है, बीरबल?"


बीरबल ने मुस्कराते हुए कहा, "हुकुम, ऐसा हो सकता है, लेकिन क्या आप मुझपर भी अंधा भरोसा नहीं करते?"


अकबर ने हेरत में कहा, "तुम पर? क्यों?"


बीरबल की यह बात सुनकर अकबर हंसते हुए बोले, "तुम बहुत होशियार हो, बीरबल। तुम्हारी बातों में हमेशा कुछ बात होती है।"


बीरबल ने कहा, "जी हाँ, हुकुम। आपने मुझसे कभी नहीं पूछा कि मैं कहां था या क्या कर रहा था। आपने मुझपर बिना सवाल के भरोसा किया है।"


अकबर ने हंसते हुए कहा, "तुम सही कह रहे हो, बीरबल। मैं तुमपर भी बिना सवाल के भरोसा करता हूँ।"


कहानी से सीख :

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि विश्वास एक बहुत ही महत्वपूर्ण गुण है और यह हमारे रिश्तों को मजबूती से जोड़ने में मदद करता है। अकबर ने बीरबल पर भरोसा किया और उसकी सोच को महत्वपूर्णता दी, जिससे एक मजबूत और विश्वासयोग्य सम्बन्ध बना रहा।


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