पांडवों की जन्म कथा महाभारत के आदि पर्व, 'आदिपर्व' में मिलती है। इस कथा के अनुसार, पांडवों का जन्म कुंती और देवता सूर्य (सूर्य देव) के बीच हुआ था।
कुंती का विवाह कुरु राजा पांडु से हुआ था, लेकिन पांडु को शाप मिला था कि वह संभोग करने के दौरान अपनी पत्नी को नहीं छू सकते थे। इस शाप के कारण, पांडु ने अपनी पत्नी कुंती से कहा कि वह विचार करें और देवता को आह्वान करके उन्हें बुलाएं, ताकि उन्हें वर प्राप्त हो सके।
कुंती ने इस स्थिति में महामुनि दुर्वासा की सेवा करते हुए उन्हें आतिथ्य दिया और उनकी पूजा की। प्रसन्न होकर, दुर्वासा ने कुंती को एक मन्त्र दिया, जिसके द्वारा वह किसी भी देवता को आह्वान कर सकती थीं और उनसे वर प्राप्त कर सकती थीं।
कुंती ने इस मन्त्र का उपयोग करके सूर्य देव को आह्वान किया और उनसे अश्विनी कुमारों के माध्यम से तीन पुत्रों का आशीर्वाद प्राप्त किया। यही तीनों पुत्र पांडु के पुत्र हुए और उन्हें युद्धस्त्र का ज्ञान, धर्म और नीति में निपुणता, और शूरवीरता मिली। इन तीनों के नाम युद्धिष्ठिर, भीम, और अर्जुन थे।
इसके बाद, कुंती ने और भी एक मन्त्र के द्वारा आग्नेयी देवता अग्नि को आह्वान किया और उनसे भी दो पुत्रों का आशीर्वाद प्राप्त किया। इन दोनों पुत्रों के नाम नकुल और सहदेव थे।
इस प्रकार, पांडु की पत्नी कुंती ने पांडवों को जन्म दिया और उन्हें धर्म के पथ पर चलने के लिए प्रेरित किया। पांडव भगवद्गीता में अपने उदात्त धार्मिक उपदेशों के लिए प्रसिद्ध हैं और महाभारत के युद्ध में उनका बड़ा योगदान हुआ।
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