बहुत समय पहले की बात है, एक समृद्धि शाली नगर के एक व्यापारी जहाजीवाले नामक सिंदबाद अपने साथियों के साथ समुद्री यात्रा के लिए निकले। सिंदबाद ने हिंदबाद को कहा, मैं अपनी पांचवीं यात्रा के एक साल बाद दोबारा यात्रा पर निकल पड़ा। जब मैंने दोबारा यात्रा करने की बात कही, तो मेरे दोस्तों ने मुझे बहुत मना किया, लेकिन मैंने किसी की न सुनी। सबसे पहले मैंने रोड से यात्रा शुरू की और फारस के कुछ नगरों में घूमा। इसके बाद एक जहाज पर बैठकर मैंने अपनी छठी जहाजी यात्रा शुरू की। जहाज के कप्तान ने मुझे बताया कि वो लंबी यात्रा करने वाले हैं और कई जगहों पर जाएंगे।
एक दिन जहाज को चलाने वाला व्यक्ति, जो कुछ दिनों की यात्रा पर था, रास्ता भूल गया। उसने नक्शे और किताबों की मदद से बचाव करने का प्रयास किया, लेकिन वह पांच दिनों तक सही रास्ते पर नहीं पहुंच सका। अचानक, उसने जोर-जोर से चिल्लाने लगा और अपना सिर पीटने लगा। जब से जहाज एक खतरनाक रास्ते में आ गया है, तो उसे लगता है कि सभी यात्री मर जाएंगे क्योंकि एक लहर आएगी, जिससे जहाज उछलेगा और पहाड़ी से टकराएगा, जिससे जहाज के टुकड़े हो जाएंगे।
खुशकिस्मती से जहां हम पहुंचे थे, वहां पास में ही एक तट था। हमने खाने पीने की चीजें जल्दी तट तक पहुंचा दी और उधर तट के पास ही रूक गए। कुछ ही देर में वो लहर आई और पूरा जहाज टुकड़ों में बट गया। उस तट के आसपास कई सारे लोगों के कंकाल थे और व्यापारियों के सामान बिखरे हुए थे। यह देखकर सब समझ गए कि यहां से बचकर जाना मुश्किल है। तब सभी व्यक्तियों ने आपस में खाने-पीने का सामान बांटा, जिससे किसी को भी कुछ दिन तक खाने पीने की परेशानी का सामना न करना पड़े। उस माहौल में लोग आसानी से नहीं रह पा रहे थे। एक-एक करके सब हिम्मत हार गए और निराश होकर मरते चले गए। जैसे-जैसे लोग दम तोड़ते गए, मैंने उन्हें अच्छे से कब्र में डाल दिया और सबके खाने की चीजों को अपने पास रख लिया।
कुछ दिनों बाद मैं भी निराश हो गया और खुद के लिए कब्र खोदने लगा। वहां से बचकर निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। मेरे मन में कई सवाल आने लगे। मैं खुद को यह कहकर कोसने लगा कि पता नहीं क्यों मैं इस सफर पर निकला। घर में आराम से रह रहा था, लेकिन अब यहां जान पर बन आई है। फिर एक रात मेरे दिमाग में आया की पास से ही नदी निकलती है, वह कही-न-कही जाती ही होगी।
उसके बाद मैंने सुबह होते ही पास पड़े कुछ टूटे हुए जहाजों से एक नाव बनाई। फिर खाद्य पदार्थों को नाव में रखकर और अन्य बेशकीमती चीजों को उस पर लादकर मैं निकल गया। सारे समान को मैंने नाव में कुछ इस तरीके से रखा कि नाव का संतुलन बना रहे। धीरे-धीरे मैं नदी के बहाव के साथ नाव में आगे जा रहा था। मैं रोज थोड़ा-थोड़ा ही खाता था।
एक दिन मुझे नाव में ही गहरी नींद आ गई। कुछ घंटों के बाद मैं एक ऐसी जगह पर था, जहां मुझे चारों ओर लोगों ने घेर रखा था और मेरी नाव किसी किनारे में बंधी हुई थी। लोगों को देखकर मैं बहुत खुश हुआ। मैंने लोगों से अपनी अरबी भाषा में पूछा कि मैं यहां कैसे आया। वो लोग अरबी नहीं जानते थे, लेकिन उनमें एक व्यक्ति मेरे सामने आया और कहा तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है। यह सुरक्षित जगह है। तुम्हारी नाव उस जगह अटक गई थी, जहां से इस नदी का पानी हमारे शहर तक पहुंचता है। जब हम लोग आगे गए, तो देखा कि तुम्हारी नाव वहां अटक रखी थी और तुम सो रहे थे। हमने तुम्हारी नाव को खींचकर यहां लाकर बांध दिया।
उसके बाद उस व्यक्ति ने मेरे बारे में पूछा। मैंने अपना किस्सा सुनाने से पहले खाने के लिए कुछ मांगा। फिर पेट भर खाना खाने के बाद मैंने अपने साथ जो भी बीती वो विस्तार से उन्हें बताया। मेरी बात सुनकर सभी हैरान हुए और उन्होंने मुझे कहा कि चलो तुम यहां के यानी सरान द्वीप के राजा से मुलाकात कर लो। उस शहर के लोग मुझे और मेरे सामान को राजमहल लेकर गए।
मैंने राजमहल पहुंचकर राजा को नमस्ते किया। महाराज ने फिर मुझसे पूछा कि मैं इस राज्य तक कैसे पहुंचा। मैंने कुछ देर में ही अपने बारे में सब कुछ बता दिया। राजा मेरी बात सुनकर चौंक गए। फिर उन्होंने मुझे अपनी पोटलियों को खोलने के लिए कहा। उसमें इतना सारा रत्न देखकर वह दंग रह गए। मैंने राजा से कहा कि ये सारे रत्न आपके लिए ही हैं। आप रख लीजिए इन्हें।
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महाराज ने बड़े प्यार से कहा कि नहीं यह सारे रत्न आपके हैं और आप ही इन्हें रखिए। इतना कहकर उन्होंने अपने सैनिकों को मेरा अच्छे से ख्याल रखने और एक अलग बड़ा सा कमरा देने को कहा। मैं वहां कई दिनों तक रहा और पूरे नगर में घूमा। मैंने देखा कि नगर में कई ऐसे पहाड़ हैं, जहां से बेशकीमती रत्न निकलते थे। उस नगर में खूब सारे सफेद मोती और लाल मोती भी थे। यह सब देखकर मुझे काफी अच्छा लगा।
पांच-छह दिन वहां रहकर मैंने महाराजा से अपने देश वापस जाने के लिए आज्ञा मांगी। उन्होंने एक जहाज और कई सारे उपहार देकर मुझे भेजा। इसके अलावा, बगदाद के खलीफा के लिए एक पत्र और कई महंगे तोहफे दिए। सबसे विदा लेकर मैं अपने बगदाद के लिए निकल गया। सात दिनों में जहाज बगदाद पहुंच गया।
वहां पहुंचते ही मैं सभी उपहार लेकर खलीफा के पास पहुंचा। साथ ही मैंने सरान द्वीप के राजा का पत्र भी उन्हें दिया। उसे पढ़कर खलीफा को अच्छा लगा और बेशकीमती रत्न देखकर भी वो बेहद खुश हुए। उसके बाद खलीफा ने मुझसे पूछा कि क्या जितनी बड़ी बातें पत्र में उन्होंने की है और जितने कीमती उपहार सरान द्वीप के राजा ने भेजे हैं, उतना ही बड़ा उनका दिल और राजमहल है। यह सुनते ही मैंने बताया कि उनका राज्य बहुत समृद्ध है। वहां कई सारे कीमती रत्न मिलते हैं। उनकी प्रजा भी बहुत प्रेम से रहती है। वहां सब कुछ इतना अच्छा है कि कोतवाल और न्याय करने वालों की जरूरत भी नहीं पड़ती।
मेरी बात सुनकर खलीफा ने कहा कि लगता है वो बहुत समझदार राजा हैं। उनकी बुद्धि के कारण ही सब कुछ वहां अच्छे तरीके से नियंत्रित है। इतना कहकर खलीफा ने मुझे जाने की इजाजत दी।
इतनी कहानी सुनाकर सिंदबाद ने हिंदबाद से कहा कि अब आप कल आना और मुझसे मेरी आखिरी समुद्री यात्रा के बारे में सुनना। इतना कहकर सिंदबाद ने हिंदबाद को कुछ उपहार भी दिए। अगले दिन सिंदबाद ने अपनी सातवीं और अंतिम कहानी सुनाई, जिसे पढ़ने के लिए हमारी दूसरी स्टोरी पर क्लिक करें।
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