गरिमापूर्ण पद से सेवानिवृत्त मेरे चचिया ससुर अपनी नौकरी में अफसरी के ठाटबाट में रहे थे. अब उन का घर के छोटेमोटे काम में मेरा हाथ बंटाना मुझे अटपटा लगता. लेकिन वह तो जैसे हर पल का सदुपयोग करना चाहते थे.
मैं उधड़े ऊन की धुली हुई लच्छी का गोला बनाने में उलझी हुई थी. तभी पीछे से मेरे चचिया ससुर आए और इस के पहले कि मैं कुछ समझूं, उन्होंने मेरे हाथ से ऊन ले लिया और बोले, ‘‘लाओ बहू, यह काम तो मैं भी कर सकता हूं.’’
मेरे मुंह से मात्र ‘अरे’ निकल कर रह गया और उधर उन्होंने गोला बनाना भी शुरू कर दिया. मैं किंकर्तव्यविमूढ़ उन्हें ताकती रह गई.
मेरे चचिया ससुर हाल ही में रेल विभाग के ऊंचे, गरिमापूर्ण पद से सेवानिवृत्त हुए थे. पिछले वर्ष मैं सपरिवार उन के यहां गई थी. वहां उन का बंगला, बगीचा, गाड़ी, नौकरचाकर, माली, आगेपीछे ‘हुजूरहुजूर’ करते अफसर, बाबू और चपरासियों को देख कर मैं उन के ठाटबाट का मन ही मन अंदाजा लगाने लगी थी. दूसरी ओर उन का मेरे हाथ से गोला बनाने के लिए ऊन की लच्छी ले लेना किस हद तक मुझे विस्मय में डाल गया था, कह नहीं सकती.
मैं आम हिंदुस्तानी परिवार की बेटी हूं, जहां लड़कों से काम लेने की कोई परंपरा नहीं होती. काम के लिए सिर्फ बेटी ही दौड़ाई जाती है. लड़के अधिकतर मटरगश्ती ही करते रहते हैं. किसी काम को हाथ लगाना वे अपनी हेठी समझते हैं. मैं ने पुरुषों को दफ्तर काम पर जाते देखा था, पर घर लौटने पर उन्हें कभी किसी नवाब से कम नहीं पाया.
मैं ऐसे माहौल में पल कर बड़ी हुई थी जहां पुरुषपद का सही सम्मान उसे निकम्मा बना कर रखने में माना जाता था. अत: मेरा चाचा के व्यवहार से अचंभित रह जाना स्वाभाविक ही था. वह हंस कर बोले, ‘‘कुछ मत सोचो बहू, मैं तुम्हारा उलझा ऊन सुलझा कर बढि़या गोला बना दूंगा.’’
‘‘वह बात नहीं है, चाचाजी. आप यह काम कर के मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं.’’
‘‘क्यों? क्या मैं इतना खराब गोला बना रहा हूं कि तुम्हें शर्म महसूस हो रही है?’’
‘‘नहीं, नहीं,’’ मेरी समझ में नहीं आया कि और क्या कहूं.
‘‘तुम कुछ मत सोचो. जाओ, अपना काम निबटा लो, मैं यह कर दूंगा,’’ मुझे हिचकिचाता देख कर फिर बोले, ‘‘देखो बहू, मैं तुम्हारी तरह न तो खाना बना सकता हूं, न कढ़ाईबुनाई कर सकता हूं, पर यह गोला बखूबी बना सकता हूं, सो यह काम मुझे करने दो.’’
‘‘नहींनहीं, यह ठीक नहीं लगता. कोई क्या कहेगा?’’ मैं ने धीरे से कहा.
‘‘जो कुछ कहना है, सब तुम ही तो कहे जा रही हो, बहू. दूसरा कोई क्या कहेगा,’’ अब हंस कर चाची ने कहा, ‘‘मैं तो खुद बना देती, पर उलझे ऊन का गोला बनाने का धैर्य मुझ में नहीं, पर तुम्हारे चाचा में है. उन्हें गोला बनाने दो.’’
मैं और काम करने चली गई, पर मुझे बेहद अटपटा सा लगता रहा. मेरे अपने घर में पुरुषों का काम करना सदा हेय और बेकार बैठना आभिजात्य की कसौटी माना जाता रहा था. बहरहाल, उन दिनों मैं ने 3 बड़े पुलोवर उधेड़े थे और सब के गोले बनाए थे चाचा ने.
एक वही काम चाचा ने नहीं किया था, बल्कि घर के छोटेबड़े जितने भी काम पुरुष का मुंह ताकते पड़े रहते हैं, उन सब का जिम्मा उन्होंने अपने ऊपर ले लिया था. घर के मुख्यद्वार पर लगी घंटी भी उन्होंने ठीक करवा दी थी. पता नहीं कैसे चाचा को बिना कहे मालूम पड़ जाता कि मैं किसी चीज के खराब होने से असुविधा में हूं या तो वह खुद उसे ठीक करने बैठ जाते अथवा बाजार से ठीक करवा लाते. उन्होंने कभी मेरे पति के दफ्तर से लौट कर आने और मोटर पर बाजार जाने की प्रतीक्षा नहीं की.
चाचा को देख कर कोई ‘अवकाश प्राप्त’ कह ही नहीं सकता था. वह समय के हर पल का सदुपयोग करते थे. जैसी चुस्तीफुरती उन में थी, वैसी तो जवानों में भी कम ही देखने को मिलती है.
अपने घरों में व्यस्त रहने वाले तो बहुत लोग मिल जाएंगे. परंतु जो दूसरों के घर जा कर भी व्यस्त रह सकें और वह भी अपने काम में नहीं, बल्कि मेजबान के काम में, उस की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है. चाचाजी के काम करने का ढंग कुछ ऐसा था कि उन्होंने कभी मुझे यह अनुभव नहीं होने दिया कि वह मुझ पर कोई एहसान कर रहे हैं.
चाचाजी कहते, ‘‘गृहिणी की इच्छा, अनिच्छा सर्वोपरि है क्योंकि वह गृह रूपी पहिए की धुरी है.’’
अब तक तो मैं ने गृहस्वामिनी की मरजी की बात सुनी थी, गृहिणी का इतना सम्मान व महत्त्व पहली बार जाना था.
उस रोज जो चाचाजी ने उधड़े ऊन का गोला बनाने का काम मुझ से लिया तो मेरा मन आत्मग्लानि से भर सा गया था. कोई पुरुष, वह भी बुजुर्ग, ऊपर से ससुराल पक्ष का इतना वरिष्ठ सदस्य, मेरे करने वाला काम मेरे हाथ से ले ले, बता नहीं सकती, कितनी शर्म की बात लग रही थी मुझे. शायद इस ग्लानि से मुक्ति पाने के लिए उस रोज 2 सब्जियां और दाल के स्थान पर 3 सब्जियां, दाल, सलाद बना दिया.
खाने पर बैठते ही चाचाजी ने पूछा, ‘‘अरे, आज क्या कोई मेहमान आने वाला है?’’
‘‘नहीं तो,’’ मैं ने उत्तर दिया.
‘‘तो फिर यह तीसरी तरकारी क्यों?’’
‘‘बस, यों ही. आप को अच्छी लगती है न?’’
चाचाजी ने कोई उत्तर नहीं दिया, पर तीसरी सब्जी को हाथ भी नहीं लगाया. भोजनोपरांत बोले, ‘‘देखो बहू, यदि तुम शाही दस्तरखान बिछा कर हमें मेहमान की तरह बोझ बना कर रखोगी तो हम समझेंगे बहू हमें जल्दी जाने का इशारा कर रही है.’’
‘‘नहीं, नहीं, चाचाजी, आप गलत समझ रहे हैं,’’ मैं ने जल्दी से कहा.
‘‘तो फिर कल से वही 2 तरकारी और दाल, बस.’’
‘‘जी, ठीक है.’’
सास के आतंकित करने वाले बहुत से रूप थे मन में. मगर चाची अपने गोरे, गोलमटोल हाथों में निरंतर सलाइयां चलाते हुए मेरे हर काम में कोई न कोई अच्छाई ढूंढ़ कर उस का गुणगान करती रहतीं.
अपनी गृहस्थी की चक्की में रातदिन जुटी रहने पर भी मैं जानती थी कि बहुत से काम अनभ्यस्त होने के कारण मैं उतनी दक्षता से नहीं कर सकती थी, जितनी कि मेरी जेठानियां, ननदें वगैरह करती थीं. पर चाची ने कभी इंगित नहीं किया कि उन्हें मेरा कोई काम बेढंगा या फूहड़पन से भरा हुआ लगा था.
मैं सोचने लगी, अगर इस महंगाई के जमाने में घर आने वाले मेहमान, चाचा के अनेक गुणों में से एकाध भी ले लें तो मेहमाननवाजी बोझ न महसूस हो. आश्चर्य तो तब होता है, जब बहू सास के घर, सास बहू के घर, बहन बहन के घर, देवरानी जेठानी के घर, ननद भाभी के और भाभी ननद के घर मेहमान बन कर रहती हैं और उन के कारण बढ़े हुए काम में चक्करघिन्नी की तरह घूमती गृहिणी के काम को हलका करने को हाथ नहीं बढ़ातीं, बल्कि हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती हैं.
अकसर देखा गया है कि जो व्यक्ति कार्यकुशल होता है, वह अहंकारी भी होता है. इस के अलावा अधिकतर पत्नियों को अपने पति द्वारा दूसरों का काम करना फूटी आंख नहीं सुहाता. खुद चाहे कितना काम लें अपने पति से, अधिकार है उन्हें, पर कोई दूसरा उन के पति की निपुणता से प्रभावित हो कुछ करने को कह भर दे, तो उन्हें लगता है कि उन के पति का गलत इस्तेमाल हो रहा है, नाजायज फायदा उठाया जा रहा है.
चाचीजी में एक नहीं, हजार अनुकरणीय गुण थे. वह अपने पति को दूसरों का काम ही नहीं करने देती थीं, बल्कि उन के व अपने किए को ऐसा सहज रूप प्रदान करती थीं जैसे कहीं कुछ विशेष या असामान्य हुआ ही न हो.
सोचती हूं, चाचाजी पुरुष जाति को अपने निकम्मेपन के आभिजात्य से उबरने की दीक्षा दे जाते, चाचीजी स्त्रियों को सहिष्णुता और पति पर एकाधिपत्य से मुक्ति दिला जातीं तो वृद्धावस्था शायद कुछ कम शोचनीय हो जाती.
ऐसे ही रोचक कहानियां पढ़ने के लिए जुड़े रहिए My Radio Ebook से।
Read More:
***********************************************************************************
यदि ज़्यादा कहानी पढ़ना चाहते है तो इस Book को यहां से खरीद सकते है।
Buy Book Amazon Link - https://amzn.to/4bHq7F9
*******************************************************
****************************************************************
संसार में सबसे बड़ी चीज: अकबर-बीरबल की कहानी - Akbar Birbal Story Biggest Thing
जोरू का गुलाम: अकबर-बीरबल की कहानी Akbar Birbal Story Joru ka Gulam
मुर्गी पहले आई या अंडा: अकबर-बीरबल की दिलचस्प कहानी Akbar Birbal Story Egg or Cock
हरे घोड़े की कहानी: Akbar Birbal Story Green Horse
प्यासा कौआ - Ek Pyase Kauve Ki Kahani (2nd Version)
क्या लड़कियों को स्वतंत्रता देनी चाहिए? Empowering Girls
हर महीने 1 करोड़ रुपए कैसे कमा सकते हैं? How to Earn 1 Crore Monthly
कर्ण और दुर्योधन की मित्रता | Duryodhan Karan Ki Mitrata
क्यों मनाते हैं वैलेंटाइन डे? Reasons and Valentine Tips


.png)









Post a Comment
0Comments